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थका नहीं हूँ मैं (भाग-2)

थका नहीं हूँ मैं आज भी
उम्र पकने के बाद भी
दुनियादारी से, लाचारी से, बीमारी से

 

एक चिड़िया मेरी छत पर
रोज आती है
जो प्यार के गीत गाती है
वो मेरी दोस्त बन जाती है
दोनों करते हैं बातें
एक आवाज उधर वो निकालती है
दूसरी इधर मैं
काफी देर खेलने के बाद
वो उड़ जाती है
कल फिर आने का वादा करके
और मैं उन सब आवाजों को समेट कर
अपने कानों में भर लेता हूँ
छत से नीचे आ जाता हूँ
और सारा दिन उस चिड़िया के
गीत गुनगुनाता हूँ

 

ज़िन्दगी में कुछ भी
पका पकाया ना आया
जो कुछ भी पाया
अपनी मेहनत से कमाया
पाई-पाई जोड़ आराम का
हर सामान जुटाया
तिनके तिनके से घर बनाया

बस इसी जद्दोजहद में
सूर्योदय और सूर्यास्त ना देख पाया
जो इस उम्र में आकर
मुझे मेरी बेटी ने सिखाया
कि अपने लिए भी जीना जरूरी है
उम्र चाहे कोई भी हो
वो अपने लिए जीती है
और हमें जीना
सिखाती है

 

अब मैं जीना सीखने लगा हूँ
अब मैं रोज छत पर जाकर
सूर्योदय देखता हूँ
और सूरज की कुछ सुनहरी किरणे
अपने जिस्म पे उतारकर
अपनी जेबों में भर लेता हूँ
जो मुझे दिन भर
गरमाहिश और रोशनी देती है
और जीने की राह दिखाती है
मुझे अपनी ही ज़िन्दगी से मिलाती है
मेरे होने की वजह बन जाती है
मुझे एहसास दिलाती है कि
थका नहीं हूँ मैं आज भी
उम्र पकने के बाद भी
दुनियादारी से, लाचारी से, बीमारी से

 

हमारे साथ इक बिल्ली का
बच्चा भी रहता है
जिसका रंग टाइगर जैसा है

उसका नाम हमने टाइगर रखा है
वो भी मेरे साथ छत पर आता है
मेरे साथ मुस्कुराता है
सूरज को निहारता है
सूर्योदय देखता है
पक्षियों के साथ खेलता है
उसका अपनी जात में
कोई दोस्त नहीं
पर वो हमेशा मस्त रहता है
क्यूँकि वो हमें
अपना दोस्त मानता है
दोस्ती में
जन्म-मरण, जात-पात, यम-योनि
कोई मायने नहीं रखती
दोस्ती नियामत है रब की
दोस्ती में बस
विश्वास होना चाहिए
दिल साफ होना चाहिए
और प्यार होना चाहिए
मेरे दोस्त बहुत थोड़े से हैं
जो एक हाथ की उंगलियों पे
गिने जा सकते हैं
जिन्होंने मुझसे मेरा परिचय करवाया
मुझे मेरी ताकत का अहसास करवाया
मेरा हरपल साथ निभाया
मुझे हमेशा हौसला दिलाया कि
मैं कमजोर नहीं, ताकतवर हूँ
दौड़ते रहना है मुझे

मैं कभी थक नहीं सकता
दुनियादारी से, लाचारी से, बीमारी से

 

मेरी जीवन साथी
जिसके बिना मैं
अधूरा ही हूँ
मेरी बेवफाई मैं भी
मेरा साथ निभाती है
मुझे सिखाती है कि
मुहब्बत कहने की नहीं
निभाने की चीज है
ज़िन्दगी में समता होना जरुरी है
समता चाहे दुनियादारी की हो
लाचारी की या बीमारी की
चाहे हमें ज़िन्दगी को
टूटे सपनों के साथ ही
क्यूँ ना जीना पड़े
समता तुम्हें जमीन पर गिरने नहीं देती
वो तुम्हें ऊंचा उठाती है
आसमानो के पार
नए आसमानो की सैर कराती है
तुम्हें सम्पूर्ण होने का
अहसास दिलाती है
और मैं पगला समता छोड़
ज़िन्दगी भर
मोहब्बत के अधूरे पहाड़े ही
रटता रहा
भावनाओं में ही बहता रहा
बेबस बना बंजर जमीन पर पड़ा

आसमानों को निहारता रहा
इस उम्मीद के साथ कि
इक दिन मुझे भी
मुहब्बत के सारे पहाड़े
याद हो जायेंगे
मुहब्बत मेरी कमजोरी नहीं
ताकत बन जाएगी
और मैं
इस नए हौसले के साथ
आसमानों के पार
उड़ान भर सकूंगा
और कह सकूंगा कि
थका नहीं हूँ मैं आज भी
उम्र पकने के बाद भी
दुनियादारी से, लाचारी से, बीमार से…

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