मुझे अमृत्व दो

मुझे अमृत्व दो

ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ होता है
कि जब भी मैं मरना सीख जाता हूँ
तो कोई मुझे
एक नई ज़िन्दगी का
वादा दे जाता है
इस एहसास के साथ
कि यह अमर है
जो कभी नहीं मरेगी
और मैं नासमझ
फिर धोखे में आकर
जीने लगता हूँ
बिना इस अहसास के
कि जब यह धोखा टूटेगा
तब मुझे एक और
दर्दनाक मौत सहनी पड़ेगी
सड़क पर अधकुचले कुत्ते की तरह

 

रेगिस्तान में पानी का भ्रम
मेरी अमर जिन्दगी की तलाश
जिसमें बहुत प्यार हो
जो कभी न मरे
लेकिन सब व्यर्थ
फिर वही अन्त
फिर वही एहसास
वही दर्दनाक मौत
सड़क पर अधकुचले कुत्ते की तरह

शायद! मैं अब जान गया हूँ
कि हर ज़िन्दगी का अन्त निश्चित है
जिसका दर्द निर्भर करता है
कि अमर होने की चाहत
कितनी गहरी है
मैं जब-जब अमर होना चाहता हूँ
हर बार एक ही मौत पाता हूँ
सड़क पर अधकुचले कुत्ते की तरह

 

मेरा पागलपन
मैं बार-बार मरना नहीं चाहता
अमर होना चाहता हूँ
अपने प्यार को
ध्रुव बनाना चाहता हूँ
यह जानते हुए कि
इस युग में
यह असंभव है
मगर मेरी अमर ज़िन्दगी की तलाश
अनंत है, कभी खत्म नहीं होती
चलती ही रहती है
मैं बार-बार मरना नहीं चाहता
सड़क पर अधकुचले कुत्ते की तरह
मैं अमर होना चाहता हूँ
मुझे अमृत्व दो…

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *