तृष्णा

तृष्णा

अपनी तृष्णाओं की तृप्ति के लिए
प्रायः जिस मार्ग का
हम अनुसरण करते हैं
वो मार्ग सुरसा के मुख की भांति
बढ़ते ही जाते हैं
और हमारी दशा
उस अतृप्त बूँद के समान
हो जाती है
जो बादलों से निकलती है
सीप की तमन्ना लेकर
मगर खो देती है अपना अस्तित्व
सागर के खारे पानी में मिलकर…

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