दूर तक जाती
वीरान सूखी नदी
जानवरों के
अधखाए कंकाल
पक्षियों के मांस नोचते जमघट
गुर्राते और मिमियाते
कुत्तों के बीच
मैं स्वयं को
पल-पल बदलते
स्वांग रचते हुए देख रहा हूँ
मैं जानता हूँ
कि मुझे अब गिद्ध बनना है
क्यूँकि मेरे सामने
एक निरीह शिकार पड़ा है
मैं देखते ही देखते
गिद्ध बन जाता हूँ
और गढ़ा देता हूँ
अपनी पैनी चोंच
शिकार के गर्म मांस में
जो शायद मर रहा है
लेकिन अभी ज़िंदा है
तभी मुझे
एक और शिकार नजर आता है
लेकिन मेरे पहुंचने से पहले ही
किसी चील का ग्रास बन जाता है
मैं फिऱ जिस्म बदलने लगता हूँ
और बन जाता हूँ
एक चालाक चील
चील बन कर जब मैं
शिकार झपट लेता हूँ
अपनी अतृप्त तृष्णा मिटाने के लिए
एक और जिस्म ढूंढने लगता हूँ
तभी मैं देखता हूँ
कि मेरे बाईं ओर एक कुत्ता
निडर शिकार कर रहा है
मैं उसे ध्यान से देखने लगता हूँ
उसमें छिपी निडरता को
पहचानने की कोशिश करता हूँ
शायद मैं पहचान गया हूँ
वो ताकतवर है
मैं फिर जिस्म बदलने लगता हूँ
और बन जाता हूँ एक कुत्ता
जो कमजोर को देखकर गुर्राता है
कमजोर पहले, धीरे-धीरे
दबे पांव पीछे हटता है
फिऱ बद्दुआएं देते हुए
भाग जाता है
मुझपर उसकी बद्दुआओं का
कोई असर नहीं होता
क्यूँकि मैं जानता हूँ
मैं ताकतवर हूँ
कभी डर, कभी लालच के लिए
अपनी अतृप्त तृष्णा मिटाने के लिए
मेरे जिस्म-दर-जिस्म बदलने का
यह सिलसिला
अंत के प्रारंभ तक
चलता रहता है
अंततः मेरा जिस्म
अपनी अतृप्त तृष्णा मिटाने के लिए
अपना आकार बदल लेता है
मुझसे मेरा ही
अस्तित्व छिन जाता है
अब मेरे जिस्म पर
मेरा क़ोई अधिकार नहीं रहता
मेरा जिस्म
अनचाहे आकार में
बढ़ने लगता है
बढ़ते-बढ़ते वह इतना
विराट एवं विकराल हो जाता है
कि समस्त ब्रह्माण्ड
मुझमें समा जाता है
और मैं समा जाता हूँ
प्रत्येक इस युग के मनुष्य में
जो शायद!
किसी नए ज़िस्म की
तलाश में है…