शब्दों का जिस्म

शब्दों का जिस्म

सिर्फ शब्द नहीं होती सोच
सिर्फ जिस्म नहीं होती सोच
उसमें एक जान भी होती है
जो रूह से धड़कती है

 

मेरे शब्दों को समझना चाहते हो
तो तुम्हें अपनी सोच से
ऊपर उठना पड़ेगा
मेरे जिस्म पर से होते हुए
मेरी रूह तक उतरना पड़ेगा
मेरे मन की गहराइयों में डूबकर
आत्मा की ऊंचाइयों को
छूना पड़ेगा

 

क्या सोच रहे हो तुम
कि ये सब झूठ है
इसमें कोई सच्चाई नहीं
सिर्फ एक कविता है
शब्दों का सुंदर जिस्म है
शब्दों की सच्चाई नहीं
अनुभव हीनता है
अनुभव नहीं
जिस्मो का पहनावा है
अंदर की हकीकत नहीं

 

मैं सहमत हो सकता हूँ आपसे
अगर तुम
एक शब्द
सिर्फ एक शब्द
अपनी रूह से कहकर दिखाओ

 

क्या हुआ!
कोई शब्द नहीं मिलता!
तुम जितने शब्द बोलते या तोलते हो
सब दिखावा है
शब्दों से शब्दों को छुपाने का

 

तुम जानते हो
भली भांति जानते हो
कुछ शब्द दर्द होते हैं, कुछ वफ़ा होते हैं
कुछ ज़ख्म होते हैं, कुछ शफ़ा होते हैं
कुछ मंदिर होते हैं, कुछ बाजार होते हैं
कुछ शब्द सिर्फ खोखले ही होते हैं
हम इंसानों की तरह

 

यह सब शब्द हमारी रूह से नहीं
हमारे जिस्म से निकलते हैं
जो देखने में सुंदर, गर्म और टिकाऊ होते हैं
क्यूँकि जिस्मो का बाजार
हमेशा गर्म रहता है

 

कोशिश करो
शायद तुम
एक शब्द
सिर्फ एक शब्द
मन की गहराइयों से

आत्मा की ऊंचाइयों से
अपनी रूह से कह सको
किसी का दर्द सुन सको
किसी का दर्द सह सको

 

तब तुम शब्दों के
जिस्मों के बाजार से
ऊपर उठकर
यह जान पाओगे
कि सिर्फ शब्द नहीं होती सोच
सिर्फ जिस्म नहीं होती सोच
उसमें एक जान भी होती है
जो रूह से धड़कती है…

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