दोहे (भाग-1)


दया धर्म का मूल है, करुणा दियो जगाए,
जिस मन करुणा नहीं, निरा ठूठ रह जाए…


दया धर्म का मूल है, करुणा दियो जगाए,
जिस मन करुणा भही, धर्मवान बन जाए…


राग-द्वेष भय एक है, सब जग लेयो फसाए
समता मन कीजिये, जीवन सरल हो जाए…


अंदर तेरे राम है, तुझको नजर ना आए
मन की गांठे खोल दे, जग रोशन हो जाए…


बाहर अंदर एक है, जान सके तो जान
कण-कण मे जब रब दिखे, होए बौद्ध ज्ञान…


मैं मैं करता जग मुआ, मैं ना जाणयो कोए
जब मैं जानत भयो, जगत तमाशा होए…


कर्म कांड बहुतो किये, कोइनो काम ना आए
मन की गांठे खोल दे, धर्म मार्ग मिल जाए…


तिनका तिनका जोड़ के गठरिया कई बनाई
सभी छोड़ के चल दिये, जीवन व्यर्थ गवाई…


चंचल मन बालक भयो, बहुतो नाच नचाए
जब मन समता भही, अटल ध्रुव हो जाए…


जो कल था अब है नहीं, जो अब है कल नाहीं

सब जग नश्वर भयो, चिंता करे तू काही…