Events दया धर्म का मूल है-1 दया धर्म का मूल है-2 राग-द्वेष भय एक है अंदर तेरे राम है बाहर अंदर एक है मैं मैं करता जग मुआ कर्म कांड बहुतो किये तिनका तिनका जोड़ के चंचल मन बालक भयो जो कल था अब है नहीं ज्ञानी ध्यानी बहुतो मिले ज्ञानी उसको आखिए भगवा चोला पहन के धर्म हमारा एक है कुदरत का कानून है मेरा-मेरा बहु किया चार किताबें पढ़के तुम सांसो का क्या भरोसा कलयुग के भव सागर को दुनिया तो इक मेला है क्यूँ जीवन अपना खोता है कुछ साथ नहीं जाना है दुनिया रहन बसेरा है यह जग तो बेगाना है मोह माया ने घेरा है सारी उम्र तू सोता है जो भी इस जग में होता है क्यों धन का दीवाना है तू क्यूँ इतना रोता है दुनिया खेल तमाशा है नाम बिना तू अकेला है अब क्यूँ इतना रोता है कौन किसी का होता है मन मोरा बोह लालची-1 मन मोरा बोह लालची-2